Wednesday, February 2, 2011

कितना जानते हैं बच्चों को आप ?


शिक्षण के समय अक्सर बच्चों के पूर्व ज्ञान को जानने, उनके पूर्व अनुभवों को सीखने-सिखाने की प्रक्रिया  में शामिल करने की बात की जाती है. 
यह कैसे होता है आप जानते हैं. बच्चों से सम्बन्धित विषय के कुछ सवाल किये जाते हैं. और एक-दो उत्तर आ गया हम खुश की हमने बच्चों के पूर्व ज्ञान को जाँच लिया.
   
इसी तरह बच्चों के  लिए कोई सामग्री बनाते समय भी  'उनके' बारे में कुछ बातें तय की जाती हैं और उन्हीं बातों को आधार या कसौटी  मानकर बच्चों के लए कोई भी सामग्री या साहित्य रचे जाते हैं. 

बच्चों को जानने की हर कोशिश में हम कितना कामयाब होते हैं ? दुर्भाग्य से इसे जांचने के कोई सर्वमान्य और ठीक तरीके हमारे यहाँ प्रचलित नहीं हैं. या हैं भी तो अपर्याप्त. 

फिर ऐसे क्या तरीके हों जिनसे हम बच्चों को, बच्चों के बारे में ठीक से जान सकें और उनके लिए पूरे परिवेश (स्कूल, घर, समाज) को बालकेन्द्रित बना सकें ? 
कुछ स्कूल उनकी प्रोफाईलिंग के जरिये इसकी शुरुआत किये हैं. अच्छी बात है पर इसे और गहरा करना होगा.

बच्चों के बारे में जानने के लिए प्राय: कुछ सवाल किये जाते हैं- 
  • तुम्हे क्या पसंद है / अच्छा लगता है ? 
  • क्या नापसंद है / अच्छा नहीं लगता है ? 
इसी तरह उनके शौक, दोस्तों, परिवार..... आदि के बारे में कुछ सवालों के द्वारा हम उन्हें जान लेने का दावा करते हैं. 

पर उपर के दो सवालों को ही लें. इनके द्वारा हम क्या जानना चाहते हैं ? 
सवाल १ के जवाब में हम क्या सुनना चाहते हैं, किस चीज के बारे में उनकी पसंद जानना चाहते हैं  - खाना, पीना, रंग,  फूल,  फल,  फसल, स्कूल, घर, पेड़, खिलौना, खेल, जगह,  इमारत,  दोस्त,  किताब,  कहानी,  कविता, चित्र, धारावाहिक, खिलाडी ...... ?? 

हमारे आसपास बच्चों की दुनिया में इतनी सारी चीजें बिखरी पड़ी हैं, हम किन चीजों के बारे में उनकी पसंद या  नापसंद  जानना चाहते हैं ? 
अगर हमने जान भी लिया तो इसका रिकार्ड कैसे रखते हैं ? 

सच कहें तो हमारी ओर से बच्चों और उनके बारे में जानने की कोशिशें बहुत ही सीमित हैं,  इसीलिए हम बच्चों को हमेशा कमतर आंकते हैं.  
यदि हम बच्चों के सर्वांगीण  विकास की बात  कर रहे रहें हैं तो उनके 'सर्वांगीण' को जानना भी होगा.  पर यह इतना आसान नहीं हैं.

लेकिन इसके बिना कुछ करना भी आसान  नहीं है ?           

तो सोचना शुरू करें कि बच्चों को ठीक से जानने के लिए हमारे पास किस तरह के सवाल होने चाहिए ?


4 comments:

  1. ....शायद अब पूर्वज्ञान की कोई भूमिका बची भी नहीं ?

    हालांकि मेरी निजी राय में एक निश्चित आयु में कम से कम पूर्वज्ञान की अवधारणा से मैं नितांत सहमत हूँ ....फिर भी !

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  2. Shayad bachchon ko theek se janne ke liye hamare paas sawalon ke siwa kuch aur tareeke bhi hone chahiye jisse ki alag-alag samay aur paristhi mein unki soch, pratikriya, sampreshan, vyawhar, samasya-samadhan aadi ka awlokan ya vishleshan kiya ja sake.

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  3. Bachchon ke saath apne rishte per sochna jaruri hai.Unke Sath samay bitayen.Musti karen.Phir dekhen........unki sub tarah ki jankari,nye-nye shabad,sthaniy gyan........ ka bhandar hoga.Lekin nazariya badalna hoga,sikhna nhin.

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  4. Bachchon ke Saath Rishton per sochen.Kya Rishta kuchch janne ka mauka deta hai,shyad nhin.Agar sikhana hai wala nazariya badal de aur unke sath samay gujaren to bahut kuchch pata chal sakta hai.

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