''............'' ही तो है !
खाली स्थान में कुछ भी लिख सकते हैं - बच्चा, बूढ़ा, औरत, शिक्षक, खेतिहर, देहाती. . . !
राज्य या देश से जुड़े विशेषण भी रख सकते हैं - बंगाली, बिहारी गुजराती, भारतीय, पाकिस्तानी, अफ़्रीकी. . . !
समुदाय, जातिगत, पन्थ, या धर्म के आधार पर भी सम्बोधन हो सकता है- हिन्दू, मुस्लिम, सिख, जैनी . . . !
चाहे किसी के भी साथ जुड़े पर यह वाक्य प्रशंसा के लिए कम ही इस्तेमाल होता है. सच कहें तो यह वाक्य 'औकात' जताने के लिए प्रयोग होता है. हर किसी को एक सीमा में बांधता है. जैसे कि उस सीमा से बाहर जाना उसके लिए सम्भव नही है. या वह एक सीमा के आगे सोच/ कर ही नही सकता. या उसे ऐसा ही रहना चाहिए.
पर यही सम्बोधन जब दुसरे से जुड़ते हैं तब इनका मतलब और भी खतरनाक हो जाता है. जैसे कि किसी युवा को कहा जाय कि वह 'बच्चा' है या किसी 'पढ़े-लिखे' को कहा जाय कि वह 'देहाती' है. किसी को 'जंगली' कहने का मतलब तो हम सभी जानते ही हैं.
ये बातें कभी-कभार होने वाली नही हैं. ऐसी बातें अक्सर ही होती रहती हैं. ऐसा भी नही है कि ऐसी बातें हम केवल सुनते हैं, ऐसी बातें हम करते भी हैं. खूब करते हैं, धडल्ले से करते हैं. और यह हमारे व्यवहार में इस तरह शामिल है कि हमे पता ही नही चलता जब तक कि कोई दूसरा न बताये.
ऐसी बातें पढ़े-लिखे लोगों के बीच तो कुछ ज्यादा ही होती हैं. हद तो तब हो जाती है जब कई प्रकार नतीजे और निर्णय भी मात्र इतने ही कारणों से ले लिए जाते हैं. और हमें कभी भी पता नही चलने दिया जाता कि ऐसा क्यों हुआ ? और जब तक हम समझ पाते हैं तब तक हमारे लिए एक और प्रकार का कम्पार्टमेंट सोच लिया जाता है.
दरअसल यह सारी कोशिश अलग-अलग स्तर पर सत्ता कायम रखने की है. खुद को दूसरों से अलग और 'विशिष्ट' दिखाने की भी. 'देहाती' (जैसा कि लोग कहते हैं ) स्टाईल में कहें तो गुलाम बनाये रखने की साजिश भी है.
पर जनाब ! इसके बदले में (प्रतिक्रिया स्वरूप) एक और वाक्य भी प्रयोग होता है - 'ज्यादा पढ़ा-लिखा है.'
अब मुश्किल यह है कि इस 'पढ़े-लिखे' की परिभाषा कौन करे - देहाती, जंगली या 'पढ़ा-लिखा' ?