Tuesday, January 25, 2011

कौन किसको और कितना सुधारे !

आजकल के बच्चे ऐसे ही हैं. बड़ो का कहना नही मानते. किसी का सम्मान नहीं करते. पढाई लिखाई में ध्यान नहीं देते. इधर-उधर घूमा करते हैं. दिनभर दोस्तों के साथ गुलछर्रे उड़ाते हैं. मोबाइल में दिनभर जाने क्या  करते रहते हैं. टीवी से दिनभर चिपके रहते हैं. जैसे इनको  किसी जिम्मेदारी का एहसास ही न हो. भगवान जाने इनका क्या होगा, ये अपने जीवन में क्या कर पाएंगे ? 

ऐसा कहा था दादाजी ने सालों पहले अपने पोते से. और आज येही बात पोता कह रहा रहा है अपने बच्चों से. 

दादाजी तो ऐसे ही हैं यार भेजा खाते रहते हैं. कोई काम-धंधा तो है नहीं बस हुकुम चलाना है उसमे क्या जाता है ? कहीं  आयें-जाएँ तब तो पता चले दुनिया में क्या हो रहा है ? कितने बोरिंग हैं यार दादाजी ? 

ऐसा ही कहा था सालों पहले बच्चों ने दादाजी के बारे में और आज भी कह रहे हैं अपने मम्मी-पापा के बारे में. 

तब  दादाजी ने सोचा था- केयर न किया गया तो बच्चे बिगड़  जायेंगे  और आज मम्मी पापा ऐसा ही सोचते हैं. 

ददजी हमे कुछ भी करने नहीं देंगे. ये हमे चिड़ियाघर  के जानवर की तरह  रखना चाहते हैं. ऐसा सोचा था तब बच्चों ने और आज भी ऐसा ही सोचते हैं. 

बड़ों की चिंता है कि बच्चे बिगड़ रहे हैं. ये कब सुधरेंगे ?

और बच्चों  की चिंता है कि बड़े उन्हें कुछ करने नहीं देंगे ? आखिर कब सुधरेंगे ये ?

तो बड़ा सवाल यह है की दूसरे की चिंताओं में लगे ये दोनों ही लोग अपनी चिंता कब करेंगे ?

ऐसा करने भी देना चाहिए क्या ?  तो यह होगा कैसे ?

   
        

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