Wednesday, January 5, 2011

बारिश काहे होखेला

छुटकी और  बडकू में अक्सर कुछ न कुछ होत रहेला. 

एक बेरी क बात ह. साँझ क बेला रहेल. कुछ - कुछ  अन्हार हो गईल रहे. दूनो अपने घर के आंगन में खेलत रहेन. अचानक बारिश शुरू हो  गईल. बीच-बीच में बिजुरी भी चमकत रहे.

खेल में खलल केहू के भी अच्छा ना लगत.  छुटकी  के  त और भी नाही. बारिश के बूंद त कम पड़ेता पर छुटकी के सवाल ज्यादा बा.

देखीं का  बात भईल  छुटकी और बडकू में.... !  

छुटकी : इ बारिश काहे होखेला ?
बडकू : आपन खेत में फसल बा ओकरा के पानी चाही की नाही, पेड़- पौधा बा ओकरा भी पानी चाही. तालाब बा ओके भी भरे के चाही नाही त आगे गाय-गोरु कहाँ पानी पीहें.
छुटकी : इ बारिश कैसे होला, के करेला ?
बडकू : अरे टोके ना पता ? बारिश क देवता इ सब करेला  
छुटकी : इ त बहुते अच्छी बात ह. पर इ बीच-बीच में अतना चमकत काहे ह ?
बडकू : अन्हार ह न ? आपण  तरच जाला के देखत ह फिर बरसात ह.
छुटकी  : तब त ओकरा के इ भी पता होई की इ हमनी के घर ह. इहाँ हमनी खेलल जाला. इहाँ कौनो फसल नाही ह. पेड़ -पौधा भी नाही ह. तालाब भी नाही ह. फिर इहाँ बारिश काहे करेला तोहर देवता ? 

बडकू त इ सवाल सुनिके चकरा गईलें.  पर का रउया  के कउनो  जवाब सूझेला ??

त लिखीं औरी इ भी सोचीं कि -
  • जब  लईका लोग आपस  में मिललें, खेललें तब उ आपस में का-का बतकही करलें ?
  • ये बतकही से उ का का सीखलें ?
  • ओनके ये बतकही क इस्तेमाल हम आपन क्लास में कईसे  करब ?
    

      

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