एक बेरी क बात ह. साँझ क बेला रहेल. कुछ - कुछ अन्हार हो गईल रहे. दूनो अपने घर के आंगन में खेलत रहेन. अचानक बारिश शुरू हो गईल. बीच-बीच में बिजुरी भी चमकत रहे.
खेल में खलल केहू के भी अच्छा ना लगत. छुटकी के त और भी नाही. बारिश के बूंद त कम पड़ेता पर छुटकी के सवाल ज्यादा बा.
देखीं का बात भईल छुटकी और बडकू में.... !
छुटकी : इ बारिश काहे होखेला ?
बडकू : आपन खेत में फसल बा ओकरा के पानी चाही की नाही, पेड़- पौधा बा ओकरा भी पानी चाही. तालाब बा ओके भी भरे के चाही नाही त आगे गाय-गोरु कहाँ पानी पीहें.
छुटकी : इ बारिश कैसे होला, के करेला ?
बडकू : अरे टोके ना पता ? बारिश क देवता इ सब करेला
छुटकी : इ त बहुते अच्छी बात ह. पर इ बीच-बीच में अतना चमकत काहे ह ?
बडकू : अन्हार ह न ? आपण तरच जाला के देखत ह फिर बरसात ह.
छुटकी : तब त ओकरा के इ भी पता होई की इ हमनी के घर ह. इहाँ हमनी खेलल जाला. इहाँ कौनो फसल नाही ह. पेड़ -पौधा भी नाही ह. तालाब भी नाही ह. फिर इहाँ बारिश काहे करेला तोहर देवता ?
बडकू त इ सवाल सुनिके चकरा गईलें. पर का रउया के कउनो जवाब सूझेला ??
त लिखीं औरी इ भी सोचीं कि -
- जब लईका लोग आपस में मिललें, खेललें तब उ आपस में का-का बतकही करलें ?
- ये बतकही से उ का का सीखलें ?
- ओनके ये बतकही क इस्तेमाल हम आपन क्लास में कईसे करब ?
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