Tuesday, January 25, 2011

कामचोर, बेईमान या कुछ और है कौआ ... ? 

बच्चो के साथ काम करते हुए हम जैसा सोचते हैं अक्सर उससे अलग ही होता है. कविता को ही लीजिये .....   

चुहिया लायी चावल चीनी मुर्गी लायी आटा,
हरी सब्जियां तोता लाया सबने मिलकर काटा,
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...................................................................,
पूरी बनी, बनी तरकारी सबने मिलकर खाया, 
कामचोर कौवे का मन भी देख-देख ललचाया !

कौवे को कामचोर क्यों कहा गया ? इस कविता में कहीं भी स्पष्ट  नहीं है. फिर भी कविता के बाद  बच्चों से ये बात करने की कोशिश की जा रही थी की कौवा कामचोर होता है. 

पर बच्चों कि राय अलग थी. कौवे को कोई काम होगा. वह उस दिन  मदद नहीं कर पाया होगा. सबकी पार्टी थी तो कौवे को भी कोई काम बताना चाहिए था. उससे भी मदद लेनी चाहिए थी. हो सकता है उसे सूचना ही न हो ?         

कौवे के बारे में वैसे भी हमारे समाज में ढेरों किम्वदंतिया मौजूद हैं. वह आलसी होता है. कामचोर होता है. अपने बच्चे को भी पाल-पोस  नहीं पाता. उन्हें भी कोयल के सहारे छोड़ देता है. 

कौवे जैसा काम तो आज हमारे समाज में भी हो रहा है पर हम उसके लिए कीमत अदा कर रहे हैं.  

फिर कौवे को ये लांछन क्यों ?      









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