किसके बच्चे ?
भला यह भी कोई सवाल है.
हमारे अपने हैं. हमारे सपने हैं बच्चे. हमारा कल हैं. कल के नागरिक हैं. देश का भविष्य हैं.... और भी बहुत कुछ कहा जाता है बच्चों के बारे में .
मजे की बात है कि इधर १०-१५ सालों में बच्चे वो बच्चे नहीं रहे. अब उनको कई और नामों से जाना जाता है. जैसे कि -शालात्यागी बच्चे, सर्व शिक्षा अभियान के बच्चे, आंगनबाड़ी के बच्चे ब्रिजकोर्स के बच्चे, एल. ई. पी. के बच्चे, ए. बी. एल. के बच्चे, अगड़े बच्चे, पिछड़े बच्चे, तेज बच्चे, मंद बच्चे, शहरी बच्चे, गँवई बच्चे, ड्रेस के बच्चे, बैग के बच्चे, घुमंतू बच्चे..., लिस्ट और भी लम्बी हो सकती है.
पर सोचने कि बात है कि बच्चो को ये सारे नाम उन लोगो के द्वारा दिए गये हैं जिन लोगों पर उन्हें ''बनाने'' का जिम्मा सौंपा गया है. जाहिर है अलग-अलग नाम हैं. तो उनके लिए और भी चीजें अलग-अलग होंगी ही. अगर ऐसा नहीं भी होता है तो नजरिये और आग्रह का क्या करेंगे ?
बच्चे तो 'वो' बच्चे रहे नहीं. फिर शिक्षा का क्या होगा कालिया ??
और देश का ???
जाहिर है इसका सटीक उत्तर वही दे सकते हैं जिन्होंने इसका निर्धारण किया होगा| चलिए अब आप ही अंदाजा लगाइए ना कि अगली योजना में किस नाम से नवाजे जायेंगे ऐसे बच्चे ?
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉग्गिंग में कमेन्ट वेरीफिकेसन बहुत बड़ा बाधक है .....कृपया इसे हटाइये ना ....जल्दी से !
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